पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/६०

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पर खड़े थे, लपक कर अपने-अपने डिब्बों में चढ़ गये। मैंने देखा, मेरे डिब्बे में भी एक युवती लपक कर सवार हो गई है। उसकी आयु २०-२२ वर्ष होगी। वह दुबली पतली थी। नाक कुछ लम्बी, पर सुडौल थी । होठ पतले और दाँत श्वेत और सुन्दर थे। आँखें बड़ी-बड़ी थीं, उनमें कुछ अद्भुत गूढ़ता छिपी थी। वे चंचल भाव से चारों तरफ नाच रही थीं। साधारणतया वह एक मामूली औरत दिखलाई पड़ती थी, पर ध्यान से देखने पर यह स्पष्ट मालूम पड़ता था कि वह सुन्दर रही होगी--अब भी वह सुन्दर थी। पर अब चिन्ता और कठोर जीवन उसके शरीर में व्याप गया था। मैं बारम्बार उसे कनखियों से देखने लगा। मन में कुछ बुरा भाव न था, पर वह कुछ अद्भुत-सी लगती थी । मुझे इस तरह घूरते देख कर वह विचलित हो उठी। वह बारम्बार खिड़की से बाहर मुह निकाल कर देखती थी, मानो उसके मन में यह था कि कब स्टेशन आये, और वह उतरकर भागे। मैं अपनी हरकत पर लज्जित हुआ। वह थोड़ी देर में स्थिर हुई, और कुछ रोष-भरी दृष्टि से मेरी ओर देखने लगी। मैंने झंपकर जेब से एक अग्रेजी दैनिक निकाला और पढ़ने लगा। हठात् अग्रेजी के संक्षिप्त और तीखे, किन्तु मृदुल शब्द कान में पड़े । उसने पूछा था-