पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/२७

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( १८ ) नरस्वती ? सरस्वती का परिधान उसके रङ्ग में मिल गया था। तब मुनियों के जटा जूट वीतराग शरीर तुम्हारे सुख संगम से मोहित हो कर देख रहे थे। प्रेमोन्मत्त हो कर बार २ समाधि से उठ कर तुम्हारी गोद में अतृप्त भाव से तुम्हारा स्तन पान करते थे। बटुक लोग तुम्हारे गम्भीर घोष की ताल पर पवित्र साम गान करते थे। मुनियों की वेदी से गगन स्पर्शी हव्य ज्योति उठ कर दिगन्त को आलोकित करती थी । तुम्हारे चरणों को स्पर्श कर के वायु देव यज्ञ वलि से सन्तुष्ट हो पृथ्वी पर नैरोग्य सुधा वर्षाता था। विष्णु भास्कर अपने प्रखर तेज को प्राणप्रद करता था। आज न रही तुम्हारी-वह आयु, उमङ्ग, और मस्ती न रहे वे दिन । सरस्वती देव लोक सिधारी, कृष्ण के अन्तर्धान होते ही जमुना विधवा हो कर वैरागिन हो गयीं । एक २ कर के सब सौरभ गया। रह गयी एक श्री होन छाया---एक धुधला प्रतिबिम्ब, और एक · वेदना की सिस्कारी!!!