पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/२६

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जगह शरीर में धूल लग रही है, ( १७ ) दिला देती थीं । और उनकी उंगली पकड़ कर अपने सौ काम छोड़ कर आगे २ चल कर उन्हें रास्ता बताती थीं । उत्तर प्रान्तों की घनघोर उपज, करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति, माँ ! तुम अपनी अगिया में छिपा कर दूरदेशस्थ पूर्व वासी अपने बच्चों को दौड़ कर दे जाती थीं। उन से उस में जो कुछ भीगा जाता था भोगते-जो चूरचार बचती पीत समुद्र और अरब सागर में फेंक देते थे। वहाँ यूरोप और अरब के कङ्गले मुंह बाये इस वितरण की प्रतीक्षा में खड़े रहते थे। जब तुम कल २ करके अपने गम्भीर शरीर को लहराती हुई पर्वत से उपत्यका से मैदान, मैदान से नगर, नगर से सागर की यात्रा करती थी तब तुम्हें रत्ती भर भी थकान नहीं आती थी । आज तुम्हें क्या हो गया है ? मैं इस पार से उस पार तक हो आया मेरी पिडलियाँ भी नहीं भीगीं । क्या मैं बहुत बड़ा हो गया हूँ ? या तुम्हीं सूख गयी हो ? हाय ! सूख कर काँटा हो गयी हो, जगह आज तुम मां ! क्यों बिलख २ में लोट रही हो ? तुम्हारा साफ शरीर मैला और रोगी मा हो गया है। रङ्ग तुम्हारा श्याम पड़ गया है। प्रयाग की पुण्य भूमि में जब सब से प्रथम चची जमुना और सरस्वती से तुम्हारा संगम हुआ था--तब की याद है ? तुमने धवल नई साड़ी पहनी थी-चाची ने नीलाम्बर धारण किया था और कर धूल