पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/२५

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( २६ ) की ओर और एक बार गाड़ी की ओर देख रहा था। निकट आ कर मैंने देखा ! तुम्हारे कुपुत्रों ने तुम्हें धरती पर पटक रक्खा है। और वे हट्ट कट्टे जत्रान लोग कोई उद्योग धन्धा न कर के तुम्हारी छाती पर चढ़े बलपूर्वक तुम्हारे बुढापे के सूखे स्तन निर्दयता पूर्वक चूस कर तुम्हें क्षत विक्षत कर रहे हैं, और तुम धूल में पड़ी छटपटा रही हो । हाय ! हाय ! कर रही हो । कह रही हो कि इन स्तनों में अब कुछ नहीं है। पर वे वहीं डटे थे। मैंने मुझला कर पूछा तुम कौन हो ? उन्होंने निर्ल- उजता से कहा-तुम हमें नहीं जानते, जिन के तप से यह पवित्र भूमि प्रसिद्ध हुई है-गङ्गा माता के हम वही गङ्गा-पुत्र हैं, लाओ कुछ भीख दो। सब मूर्ख थे, सब के वेश गुण्डों जैसे थे। मैंने घृणा से मुह फेर लिया। मैं तुम्हारा सूखा, मलिन, उत्साहहीन रूप देखने और गेने लगा !! हाय ! आज वह तुम्हारी सारी शोभा कहाँ विलीन हो गई ! किस अतल पाताल में डूब गई ? तुम्हारी ही गोद में ने दो दो सहस्र रणपोतों का बेड़ा सहस्रों योद्धाओं को ले कर सुदूर सागर में पहुँचता था। वह चलती फिरती विजयोल्लासित महा नगरी तुम्हारी छाती पर फूल की तरह तैरती फिरती थी ! और तुम हिलोरों की थपकियों से उनका प्यार करती थीं।