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( १८० ) आना- न्याच मूर्ति रानाडे ने तो न्याय न्याय विलगाया। नीति न्याय सम्बन्ध गोख ले नेपीछे प्रकटाया। न्यायधर्म पर निर्भर हो यह पूज्य तिलक ने गाया । धर्म न्याय का सह संचालन गांधी ने प्रकटाया । श्राओ अर्थवाद पर आत्मवाद को अन्तिम विजय दिलाओ। धर्म नीति से राज नीति का पक्का व्याह कराओ। मनुकुल का यह लौकिक जीवन धर्म प्रधान बनायो । इस कलियुग में भारत का उत्कट उत्कर्ष दिखाओ। पात्रो- छली स्वार्थ से विनय बालिका का अब पिण्ड छुड़ादो। प्रेम मार्ग से विषय वासना का दुमैल हटादो। शुभ्र चतुरता की सच्चाई पर से भीति भगादो। आविश्वास का मैत्री से वस सब सम्बन्ध छुटादो। बायो- कभी न हों अवसान हमारे जीवन का मरने से । मृत्यु पुरानी काया हर कर नूतन सुन्दर तन से। कार्य हमारे कभी न हो शाब रुद्ध मृत्यु की हद से। अमर रहें, हम निर्भय जीवन पा विजयी पद से।