पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१८२

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जाओ[]

जाओ!
उन मनहूस दिवारों की एक बाँकी झाँकी करने।
इस्पाती पिंजरे में कुछ दिन वद्ध बसेरा बसने।
तपा अग्नि में इस कुन्दन को खरी कसौटी कसने।
परहित पीड़ित होकर दुर्लभ आत्म तुष्टि रस चखने।
जाओ ए रणबंके छैला! खूब अकड़ कर जाओ।
जाओ—
रण रसिया पर रण उमंगको ज़रा रोक कर रखना।
घड़ी अनी की आवे तब तक मन में धीरज धरना।
साहस कभी न खोना उस अवसर की आशा करना।
व्यर्थ पतंग समान न जलना मर्द कहा कर मरना।
जीते मरे जभी आओ तब हमको हंसते पाओ।
जाओ—
मन में मैल न लाना दुख में कायर रुदन न रोना।
मोती के दर मिली वस्तु पानी के भाव न खोना।


  1. श्री गणेश शंकर विद्यार्थी की जेल यात्रा पर।