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( १६४ ) खु.शी से अपनी ड्य टी कीजिए ।" बात आगे बढ़ती जा रही थी । पुलिस थाना चौपाल बन था । बेचारे दारोगाजी कुछ मतलब नहीं समझ रहे थे। बाहर भीड़ ने आफत मचा रक्खी थी। सिपाही कई बार भीड़ को हटाने की इजाजत माँग चुके थे। परंतु दारोगाजी इस इतज़ारी में थे कि ये लोग कुछ कहें, तो इनके यहाँ पाने का कारण मालूम हो । आखिर उन्होंने कहा- आप लोगों के लिये शर्बत मँगाया जाय ?" "जी नहीं, आपकी मिहरबानी है।" "तो फर्माइए, क्या हुक्म है ?" "हुक्म की इतज़ारी तो हम लोगों को है।" "मैं तो कह चुका कि मैं श्रापका और सरकार का खादिम " "तो इसमें हमें कुछ शिकायत थोड़े ही है।" "यह आपकी मिहरबानी है।' थोड़ी देर फिर सन्नाटा रहा। अंत में एक सज्जन ने खड़े होकर कहा- "दारोगा जी, कब तक आप यह शराफत का लिहाज रक्खेंगे । अब डिक्टेटर साहब हाजिर हैं। इन्हें गिरफ्तार