( १६२) वालंटियर लोग साक: बांधकर खड़े हो गए। महिला मंडल केशरिया बाना धारण किए, राष्ट्रीय गान गाता आ धमका। बड़ा-सा कौमी झंडा झूलने लगा। टर साहब के घर की स्त्रियों ने उनको निकासी बड़ी सैयारी से उसी भांति की जिस भांति दूल्हे की घुड़चढ़ी होती है। उन्हें नहलावुलाकर बढ़िया वस्त्र पहनाए गए। दही-रोरी का तिलक लगाया, और फूलों का हार गले में पहनाया। सज-धजकर डिक्टेटर साहब जब बाहर आए, तो वन-गर्जन की भाँति तीनों नारे बुलंद हुए। एक बढ़िया मोटरकार लोग मांग लाए थे, उसे फूलों से सजा दिया गया था। टर साहब धर्मपत्नी सहित उसमें बैठ', और हजारों स्त्री पुरुषों के जुलूस के साथ पुलिस.कोतवाली की ओर चले। (४) ज्यों ही जुलूस निकलकर बाजार में आया, खटाखट बाजार की दूकानें बंद होने लगी । पूरी हड़ताल हो गई। थाने तक पहुँचते पहुँचते जुलूस ५ हजार आदमियों का हो गया। थाने के फाटक पर जुलूस रुका। थानेवाले चौकन्ने हो गए। पुलिस के जवानों ने लाठियां सँभाली। टर साहब फूल मालाओं से लदे हुए मोटर से उतरे । चुने हुए लीडरों के साथ डिक्टेटर साहब शान से अकड़ते हुए थाने में घुस गए। भीड़
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