। (१५६ ) और मैं ?" "आप हमें पहुँचाकर आफिस जाँय, दूसरा बैच तैयार कर कल यहाँ श्राकर फिर नमक बनाएँ ।” इसके बाद पार्टी ने सफ बनाई, और देश भक्ति के गीत गती कोतवाली की तरफ चली । नगर-निवासियों की भीड़ उसके साथ थी कौमी नारे आसमान और धरती दहला रहे थे कोतवाली के फाटक पर पहुँचकर दल रुकका । पुलिस इंस्पेक्टर ने डिक्टेटर साहब से कहा- "अब आप क्या चाहते हैं ?" "हम गिफतार होना चाहते हैं।" "मगर आपका वारंट तो है नही" "मैं नहीं जानता, मैं गिरफतार हूँगा।" "तब आप कुछ बोलिए-भाषण दीजिए।" "मैं भाषण नहीं दूंगा।" "तो फिलहाल आप घर जाइए । इंस्पेक्टर ने अपने श्रासामियों को अंदर किया। और, डिक्टेटर साहब इन्कलाब के नारों में तैरते हुए घर पहुँचे। दूसरे दिन उन्हीं के अखबार में उनकी वीरता, साहस मादि के बखान के साथ ही उनका फोटो भी छपा था। (३) इसके तीन दिन बाद । डिक्टेटर साहब कांग्रेस-ऑफिस में
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