( १५७ ) उभारे, पान कचरते, मठोलियां मारते, धरती में भूकंपउदयकरते शहर को लौट रहे थे । जमना के पुल के उस पार देखा एक लारी पर कोई १०-१५ कांस्टेबिल, लाल-लाल पगड़ियाँ सिर डाटे बड़ी-बड़ी लाठियाँ कान से ऊंची किए, बीच सड़क में खड़े हैं। सब के आगे कलाबत्त के झये की खाकी पगड़ी पहने, चुस्त वर्दी कसे इस्पेक्टर साहब मा डटे हुए हैं। जैसे अचानक साँप को देख कर बालक डर जाय, उसी भाँती वह लीडरों, लीडरानियों और स्वयंसेवकों की पार्टी एकबारगी स्तंभित हो गई। जिनके मुह में पान था, वह मुह में रहा डिक्टेटर साहब एक अखबार के एडीटर थे। एडाटर तो हुए थे पेट के लिये, पर एडीटर को लीडर और लीडर एडीटर को डिक्टेटर बनना अनिवार्य होना ही चाहिए, इस- लिये एडोटर उर्फ लीडर उर्फ डिक्टेटर सबसे आगे साथ थे। परंतु इसलाल झंडी कोदेखते ही उनकी सब टर्र हो गई। कानून-तोड़ रेलगाड़ी वहीं स्टाप हो गई। सब एक दूसरे का मुह देखने लग। वे आँखों में कह रहे थे --"-पुलिस-जेल -पुलिस-जेल । एक महिला ने आगे बढ कर दर्प से कहा- "भाईयो, डरने की क्या बात है, आगे बढ़े अगर ये हमें गिरफ्तार करने आए हैं, तो चलिए, हम गिरफतार होंगे।" पार्टी में गर्मी आई। पहले धीरे धीरे, पीछे स्वाभाविक गति से पर्टी की पार्टी आगे बढ़ी। निकट आने पर इन्स्पेक्टर
पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१६६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।