पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१५७

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1 199 ( १४८ ) "उसका नाश हो, अब चुप रहो।" "सुनो एक बात कहता हूँ।" "कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, भागो यहाँ से।" "सुनो भाई, मैंने एक निश्चय किया है। अब मैं नहीं सहन कर सकता, मैं अभी चला जाऊँगा। फिर अब 'मुलाकात नहीं होगी। "जाओ जहन्नुम में । तुमने क्या निश्चय किया है ?" "वही तुम भी करो । विश्वास घाती को मज़ा चखादो "क्या क्या ?" "मुखबिर हो जाओ। "हरामी, विश्वास घाती, दूर हो।" "तब फाँसी पाओ। जिस ने तुम्हारे जैसे मित्र विश्वासी की स्त्री को बिगाड़ा, धोखा दिया उसे, तुम्हारी जगह मैं होता तो अवश्य फाँसी पर लटकवाता।" "अरे झूटे दूर हो ।” हरसरन वहाँ से लौट आया। कुछ ही देर बाद उसने शब्द किया “टिक् टिक् टिक” । कोई भी उत्तर नहीं आया। वह अब बड़ी तेजी से उस छोटी सी दुर्गन्धित कोठरी में चक्कर काटने लगा। उसकी आँखें फटी पड़ती थी । मुट्ठियां बन्द थीं और वह दाँत मिसमिसा रहा था। वह जोर २ से पैर पटकता