तरह- डङ्क मारती है, बिजली की तरह नाशकारी और मृत्यु की तरह भयानक है। हाय ! कहाँ गया वह भूत ! कहाँ गया वह अतीत ! जिन्होंने तुम्हारा यौवन देखा है वे कहते हैं कि जब तुम अगाध समुद्र के फेनों की उज्ज्वल करधनी पहन कर खड़े होते थे तो संसार की जातियाँ तुम्हारे बाँकपन पर लोट पोट हो जाती थीं। यह बात सच मालूम होती है । ग्रीष्म की सन्ध्या को नैनी- ताल में, शरद की पूर्णिमा को हरिद्वार की गङ्गा में, बसन्त के प्रभात को कृष्ण की विहार भूमि मथुरा में, वर्षा की दोपहरी को अजमेर में मैं तुम्हारी छटा को देख चुका हूँ, मुग्ध हो चुका हूँ, मर २ गया हूँ, जी २ गया हूँ। वह मनोहरता आँखों में बस रही है, जन्म भर बसी रहेगी। 'यह तो तुम्हारे बुढ़ापे की छटा का हाल है, यह तो तुम्हारा लुटा हुआ यौवन है, धुली हुई लुनाई है, बीता हुआ जमाना है। फिर तुम्हारी जवानी के सौन्दर्य की जो प्रशंसा की जाय थोड़ी है। ऐ मेरे बूढ़े स्वदेश ! अब भी कोटि २ प्रवासी तुम्हारे सौन्दर्य के स्मशान की झाँकी करने आया करते हैं। तुम्हारे नेत्र दीखने में जैसे सुन्दर थे देखने में भी वैसे ही थे। पर अब तो ये बिलकुल धुंधले हो गये हैं तुम्हारे जिम
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