पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१४९

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(१४० ) "सच" "हाँ सुनो "कहो ? "मुलाकात करोगे?" "किससे ?" "अपनी स्त्री से - "कैसे होगी "मैं करा दूंगा।" "तुम ?" "अफसर जेल को मैंने चाँदी के टुकड़ों से वश में कर लिया है। "छी, ऐसे थे तो जेल क्यों आये?" "तब लोग तुम्हारी तरह लोहे के कैसे बनेगे दोस्त ?' "मैं मुलाकात नहीं करूंगा। "सुनो" "कहो।" "कल शिकायत ज़रूर करना ।" "हरगिज नहीं।" इसके बाद हसरन ने कहा-"सुनो" उधर से जवाब नहीं आया। हरसरन ने संकेत किया, टिक, टिक, टिक। उसका उत्तर नहीं। आया। वह चुपचाप 66