( १३६ ) रहा था जब नींद के झोंके आते, वे दोनों राक्षस उसके कान या गर्दन पकड़ कर झकझोर डालते, उसके नाखूनों में पिन चुभाते, उसके मलद्वार में लकड़ियाँ घूसते; गाली और साधारण मा की तो चर्चा करने की आवश्यकता ही नहीं। एक रात भी बीती और एक दिन भी। कान्स्टेबिल बदलते गये जो आते वे सोड़ा चाय बर्फ मिठाई उड़ाते और अट्टहास के साथ उसका उपहास करते। अन्तत; पुलिस हार गई। उसे जो कुछ भी प्रमाण मिल सके उसे लेकर केसका चालान कर दिया । २१ दिन तक भयानक यन्त्रणा और पीड़ा को भोग कर उस रोख नर्क के सामान हवा- लात से वह अर्द्ध मूर्छितावस्था में बाहर निकाला गया । उसका शरीर गिर पड़ता था-पर उसे पकड़ कर मोटर लारी में बिठा- या गया और वह जिला मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया । मार से उसका होठ, सूज गया था । और आँख के पास घाव हो गया था। छाती और पीठ पर मार के अनगिनत निशान और सूजन थी। दो कान्स्टेबिलों ने उसे घसीट कर मजिस्ट्रेट के सामने खड़ा किया । मजिस्ट्रेट ने पूछा-'तुम्हारा नाम ?" ? ". " "क्या यह गूगा है या बीमार है !” मजिस्ट्रेट ने कोर्ट
पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१४५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।