( १३३ ) हरसरन ने चिल्ला कर कहा--"बुरा हो तुम्हारा ।" शीघ्र ही दस, बीस, पचास आदमियों की भीड़ इकट्ठी हो गई । तरह २ की बातें और तरह २ को भावभंगियाँ होने लगी हरसरन हथकड़ियों से जकड़ा हुआ चुपचाप खड़ा था। किसी भी प्रश्न के पूछे जाने पर वह भरपूर वेग से चिल्ला कर कहता था--"बुरा हो तुम्हारा" तलाशी में बहुत से तेजाब, बम्ब बनाने के खोल, बहुत से कील पुजे, तार बेटरियाँ और धातुओं के दुकड़े बरामद हुए। हरसरन से अधिक उत्तर पाने से निराश हो कर पुलिस, उसे लेकर दल बल सहित थाने को चली। उस दिन के अखबारों में बम फैक्टरी के भेद उदघाटन की बड़ी लम्बी चौड़ी भूमिका छपी। पुलिस की हिरासत में हरसरनदास निर्विकल्प बीज रूप पड़ा था। पुलिस के अफसर आकर नर्मी से पूछते-"क्यों तुम्हे किसी चीज की जरूरत है ? तुम अपना खाना माँगा सकते हो, अपना बिस्तरा मँगा सकते हो, किसी से मिलना चाहो तो मिल सकते हो, पत्र लिखना चाहो तो वह भी कर सकते हो। छोटे अफसर आकर उनके पास बैठ जाते पूछते, कहो
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