( १३२ ) "तब कहाँ रहते हैं ?" "मैं नहीं जानता। अब आप जाइए, मुझे देर हो रही है।" "आगन्तुक ने हँस कर कहा-'तव तुम मुझे पहचान गये क्यों?" "आप कोई हो, मुझे इससे क्या सरोकार है।" "खर र ! जब जान ही गये हो तो यह बात मैं नहीं छिपा सकता कि मैं घर की तलाशी लूगा । मकान चारों तरफ से घेरा आ है, गड़ बड़ न करना मैं तुम्हें भी बादशाह के खिलाफ साजिश करने वालों में गिरफ्तार करता हूँ।" आगन्तुक ने जेब से हथकड़ियाँ और सोटी निकाली । सीटी बजाई और एक कदम आगे बढ़कर हरसरन के हाथ में हथकड़ी डाल दी। हरसरन ने व.हा--"बुरा हो तुम्हारा । आगुन्तुक ने अपनी रोबदार धनी काली डाढ़ी में से चमचमाते हुए दाँत निकाल कर हँस दिया और हथकड़ी की चाबी घुमाते हुए बोला-“अब जिसका बुरा भला होना होगा हो जायगा । इसी समय चार कान्स्टेबिल और पुलिस के एक इंस्पेक्टर कमरे में घुस आए । हरसरन को एक कानटेबिल के सुपुर्द करके आगन्तुक ने इंस्पेक्टर से कहा-"दो चार भले प्रादमियों को बुलालो मकान की तलाशी ली जायगी।"
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