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आगये?* अागये ? हमारी बेगैरत श्राखें एक टक तुम्हें देखने का साहस कर रही हैं। हम अपने कायर हाथों में तुम्हारे स्वागत के लिये फूलों और फूलमालाओं का हर ले आये हैं, लो, धारण करो, प्रसन्नता से फलो, हमें शाबाशी दो, हमारी पीठ ठोंको, हम ने खास तुम्हारे लिये ही, इतना सब कुछ किया है। हम अन्तः करण से तुम्हारा सम्मान करते हैं। क्यों ? सुस्त क्यों हो गये ? क्या हमारे स्वागत में कुछ कमी है ? हमने कई दिनों से प्रतीक्षा कर रखी थी, कल से खाना सोना भी छोड़ दिया था, धोबी से कड़ा तकाजा कर के कपड़े धुलवाये हैं और अन्धेरे में ही हजामत बनवा कर सज धज कर आये हैं तुम्हारे आने ॐ ये पंक्तियाँ एक बार श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के जेल से लौटने पर स्वागत कर्ताओं को लक्ष्य करके लिखी गई थीं।