यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१०३ ) अभी शरीर में गर्मी और चहरे र लाजी थी। उसने अपने आँचल से उसका मुंह पोंछा-चोली का टीका लगाया राखी भी बाँधी और माथा टेककर प्रणाम किया। इसके बाद उसने वहीं खड़े हो कर मन ही मन कुछ प्रण किया, और चल दी। यह दद यह दर्द हमेशा बना ही रहे, दिल हाय किसी का दुआ करता है । निकला करती हैं उसासें सदा, हग-द्वार से नीर चुश्रा करता है । यहाँ घाव लगे अनेक उन्हें, हठ से छली कोई छुआ करता है । एक आग लगी रहती है यहाँ, एक दर्द हमेशा हुआ करता है । ले०--श्री 'मुक्तिः