पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१०९

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( १०० ) "सब कुछ हो गया, बहिन ।' "क्या हो गया ? खुलामा कहो।" "नहीं आज इस समय वह बात कहने योग्य नहीं।" युवक ने बड़ी ही कठिनाई से उमड़ते हृदय को रोका। बालिका सूख गई उसने कहा--"तुम्हें कहना होगा।' "नहीं बहिन, न कह सकूँगा ?" “कहो, कहो, मैं तुम्हें आज्ञा देतो हूँ ?" वह रोने लगी। युवक ने सिर झुका कर कहा-तुम्हारी आज्ञा मैं टाल नहीं सकता बहिन, उन्हें फाँसी की आज्ञा हो गई है।" बालिका आँखें फाड़-फाड़ कर देखने लगी। उसके मुंह से बोल न निकला । युवक ने दूसरी ओर मुह फेर कर कहा "कल प्रातःकाल ५ बजे उन्हें फाँसी होगी। आज का मंगल कार्य समाप्त होने के ही लिए उन्होंने एक सप्ताह की अवधि ली थी।" बालिका अब भी मुह फाड़े खड़ी रही। वह बेंत की भाँति काँपने लगी-वह मर्छित-सी हो रही थी। "युवक ने महणी की सहायता से उसे विस्तर पर लिटा दिया । उसने कहा-"बहन, मैंने समझा था-तुम वीर भाई की वीर बहिन हो, सब सुनोगी !"