पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१०६

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( ६७ ) सतक स्वर में युवक ने इतनी बातें कहीं। बालिका रो रही थी। उसने धीरे-धीरे आकरण युवक का हाथ पकड़ लिया । उसने कहा- 'मैं हाथ जोड़ती हूँ। इसे तुम लेजाओ, तुम्हें ले जाना पड़ेगा।" "तुम्हारा दिल दुखेगा।" "तुम न लेजाओगे तो मैं जान खो दूंगी।" युवक नायक ने साथियों को संकेत किया। वे रुक गये वह गृहपति के पास जाकर बोला -"क्या आप के पास और धन सम्पत्ति है ?" "अब कुछ नहीं है।" "इसमें से जितना चाहे रख लीजिए" गृहिणी प्रभावित हो रही थी, उसने एक भारी सा सोने का जेवर उठाकर कहा-बैशाख में तुम्हारी बहिन की शादी करनी है उसके लिए यह काफी है। मेरे पुत्रो जाओ, यह सब तुम ले जाओ । भगवान् तुम्हारा कल्याण करे। युवक ने गृहिणी के पैर छुए, साथियों ने गट्टड उठाये और चल दिये। बालिका युवक के पीछे-पीछे जा रही थी, जब उसने ड्योढ़ी से बाहर कदम रखा, उसने पुकारा- ", "भाई -