"किया " बालिका रोने लगी पिस्तौल उसके हाथ से छूट गई युधक ने उसका आँचल आँखों से लगाया और कहा- "वहिन अपने भाई को कुछ आज्ञा करो?" बालिका चुप रही । युवक ने कहा-"अगर तुम्हारी इच्छा नहीं तो हम यह धन नहीं ले जावेंगे। कहो क्या कहती हो?" बालिका कुछ न बोली। युवक कुछ देर बालिका की ओर देखता रहा फिर वहाँ से तेजी से बाहर आगया । बाहर लूट का सब सामान इकट्ठा था, सब डाकू चुपचाप नायक की प्रतीक्षा में खड़े थे। नायक ने अधिकार सम्पन्न स्वर में कहा "यहाँ से एक पाई भी नहीं ले जाई जायगी ! तुम लोग बाहर चले जाओ। वहाँ, उस कमरे में तुम्हारे साथी का शव पड़ा है, उसे भी ले जाना होगा। शव को लेकर डाकू लौटने लगे । सब के पीछे नायक नीचा सिर किये जा रहा था। पीछे से किसी ने मृदुस्वर से पुकारा--"ठहरो" युवक ने रुककर देखा-बालिका है । वह लौटकर उसके सन्मुख खड़ा हो गया। उसने तीखे स्वर में कहा- "क्या कहती हो?" "लोटे क्यों जा रहे हो
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