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मनुस्मृति म२ भाष नुवाद . जातकर्म, नामकरण संस्कार निष्क्रमण, अभप्राशन चूडार्म सस्कार उपनगम का काल और कालानिम का दोप ३६-४० धर्म मेवला. उपर्यत और वएडों के वर्णन मिक्षा का प्रशार, माजन ४१-५१

  • कम ओर मुख पर मेजिनका सा फल है प्रक्षित

एक श्लोक यहा तीन पुलों में अधिक है भोजन का प्रकार आचमनादि करना नामादि तीर्थो की सजा परिभाषा भावमन, मुख प्रक्षालनादि का वर्णन लपवीती, निधीती आदि सक्षा मेपलादि ट्रटने पर नवान का धारण शान्त मंस्कार का समय त्रियों के इन सस्कारों में मन्त्र न पढ़े" प्रक्षिप्त "चल विवाह ही विधा का घेद मन्त्रो से हो" प्रक्षित ६७ उपनयन उपहार शिष्य को गुरु किम कार पहाया को और शिष्य पहने ममय कैसा व्यवहार करे ओंकार और गायत्री के ३ पानों के ध्याहृति पूर्वक जप का फल, लाम को निन्दादि 98-८४ विधियज्ञादि से जप यज्ञ की एना इन्द्रियों के निग्रह को पसंव्यता, इन्द्रियों की गणना ८-३ भोग में काम शान नहीं होने प्रत्युन बढ़ने हैं इत्यादि से जिद्रिय होने की आवश्यकता प्रानः साय संख्या की कसंव्यता, स्याग का दोष १०१-१०४"