पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६६१

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७ मनुस्मृति भाषानुवाद लक्षण हैं। इन सब प्राणियों का आश्रित शरीर इन सत्यादि गुणों की व्याप्ति वाला होता है | तत्र यत्प्रीतिमयुक्तं किञ्चिदात्मनि लक्षयेत् । प्रशान्तमित्र शुद्धाभं सत्त्वं तदुपधारयेत् ।।२७।। यत्त दुखसमायुक्तमप्रीतिकरमात्मनः । तद्रजोऽप्रतिपं विद्यात्सतत हारि देहिनाम् ॥२८॥ उन तीनों में से जो कुछ प्रीति से मिला हुवा और शान्न प्रकाश रूपसा आत्मा में जाना जावे उस को सत्व जाने IPO|| और जादु ख से मिला हुवा तथा आत्मा की अप्रीति करे और सर्वदा शरीरियों को विषय की ओर प्रतिकुल स्वीचने वाला है। उस कोरज जाने । यत्त स्यान्मोहसंयुक्तमव्यक्तं विषयात्मकम् । अग्नतमविज्ञेयं तमस्तदुपधारयेत् ।२६) त्रयाणामपि चैतपां गुणानां यः फलोदन । अग्र योमध्या जघन्यश्च तं प्रवच्याम्यशेषत: ॥३०॥ जो मोह से युक्त हो प्रकट न हो तथा विपय शला हो और तर्क और बुद्धि द्वारा जानने योग्य न हो उसको तम समझ॥९॥ इन (सत्वादि) तीनो गुणो का यथाक्रम उत्तम, मध्यम, अधम जो फलोदय हैं उस सम्पूर्ण को आगे कहता हूँ ॥३०॥ बेदाम्यासस्तपो ज्ञानं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । धर्मक्रियात्मचिन्ता च साचिकं गुणलक्षणम् ॥३१॥ आमरुचिताऽधे मसत्कार्यपरिग्रह।