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मनुस्मृति भाषानुवाद चाशुपश्च महातेजा विवस्वत्सुन एव च ॥६२॥" इस स्वायम्भुव मनुकं वैगमे उत्पन्न हुए मनु और हैं। उन वडे पराक्रम वाले महात्माधोने अपनी२ सृष्टि उत्पन्न की थी ॥६१|| (उनके नाम) स्वारोचिप १ ओत्तम २ तामस ३ खत ४ चातुप ५ और वैवस्वतायेछवडे कान्ति वाले हैं ॥१२॥ "स्वायंभुवानाः सप्नत मनवा भरितेजसः । स्वे स्वेऽन्त समिदमुत्पावापुश्चराचरम् ॥६३।।" म्वायम्भुव आदि सात मनु बड़े नेजस्वी हुये जिन्होंने अपने अपने अधिकार मे सम्पूर्ण चर अचर सृष्टि का उत्पन्न करके पालन किया । (५८ से ६३ तक ६ श्लोक अमगत जान पढ़ते हैं। ५८ वें मे मनु का यह कहना असगत है कि मैंने यह शास्त्र परमात्मा से ग्रहण किया। यदि बंदा का तात्यय लेकर बनाये हुवे को भाईश्वरीय पहें तो न्यायशास्त्रादि मव ग्रन्थ परमेश्वर से ही ऋपियों ने पढ़ मानन पड़ेंगे और मनु का ऋपियो से यहा तक अविच्छिन्न सम्बाद चला आता है। इसलिये यह वाक्य मुगु की और में नहीं माना जा सकता। और ५८ ३ मे यह कह कर कि मैंन परमात्मा से पढ़ा और फिर नरीमादि को पढाया ५९३ मे भाग यह कथन है कि सा मंग पढाया हुवा शान भूम तुम को सुनावेगा । इमस भी मनु का ही पिया से सम्बाद चलता रहना पाया जाता है । किन्तु य लोक बनान वाले ने इस अन्य की अणरुपेयत्ता सिद्ध करने और यह सिद्ध करने को कि मैंने सामान् मनु से पढा बनाये है । कागे । ६१ । ६२ । ६३ लोगों में यह वणन है कि स्वायंभुव के वंश मे छ, मनु हुवे थे जिन्होंने अपने अपने समय में चराचर जगत बनाव और पाले। इस से यह झलकता है कि श्लोककर्ता से और