पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६०८

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एकाऽध्यान ३०१ ॥६॥ यथोचिन काल में उपनयन का न होना वान्या का त्याग नियत वेतन लेकर पढाना. और ही देकर पढ़ने का भासपने के अयोग्य वस्तु का वेचना ||२|| सर्वावरेषधीकारो महायन्त्रप्रवचनम् । हिंसौषधीनां स्त्र्याजीवाऽभिचारोभूलकर्म च ॥६३॥ इन्धनार्थमशुष्काणां द्रुमाणामत्रपातनम् । मात्मा च क्रियारम्भो निन्दिताबादनं तया ॥६॥ सुवर्णादि सम्पूर्ण खानों में अधिकार, बड़े मारी यन्त्र का बलाना, औषधियों का काटना भार्यादि स्त्रियों से (वेश्यावत करके) आजीवन करना मारण और वशीकरण ६२॥ इन्धन लिये हरे वृक्षों को काटना ( देव पितरों के उदंश विना केवल) सत्मार्थ पाकादि काम करना और निन्दित अन्न का भक्षण ||६|| अनाहिताग्निता स्तेयमणानामनपक्रिया । असछास्त्राधिगमनं कौशीलन्यस्य च क्रिया ६५॥ धान्य कुष्यपशुस्तेयं मद्यपस्त्रीनिवणम् । स्त्रीशद्रविद चत्रवधोनास्तिक्यं चापपातकम् ॥६६॥ अग्निहोत्र न करना. चोरी करना, ऋणों का न चुकाना, असत् शास्त्रों का पढ़ना, नाचने गाने, बजाने का सेवन ।।६।। धान्य कुष्य और पशुओं की चोरी, मद्य पीने वाली स्त्री से व्यमि- भार स्त्री शून. वैश्य, क्षत्रिय का वध और नास्तिकता (ये सव) उपपातक है। (वागादि के बेचने से पुण्य कर्म सकता है। नौकरीके पढ़ने पढ़ाने में गुरु शिष्य का पूर्ण भाव नहीं रहता है। खानि खुदवाने