पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/१०४

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दूतीचाऽध्याय । भाग जप करने ही में निद्धि का प्रामगाह (अर्थात मान पास होने के योग्य होता है) और अन्य बद्र (यागादि) कर अथकान को यह मंत्र प्रर्थान नप्रिय कहा है । इसमे नशव नहीं अपनी ओर.मॅचन कन्यमाय वाल विपयां में विचरने गली इन्द्रियों के नंगम में विद्वान बन्न करें । जैम नारथि घाड़ा के रोकने में गन्न करना है | एकादशेन्द्रियाण्याहयानि पूर्वमनीषिणः । तानि सन्या प्रवच्या म यथावदनपूर्वशः ८ell श्रेत्रं त्वचक्षुशी जिवा नामिकः चैत्र पञ्चमी । पायपस्थं हस्तपादं वाक् चैत्र दशमी मना ॥६०॥ पर्व मुनिया ने जो मान्टिया नहीं हैं उनका क्रमश. टीकर श्रन्छ, प्रकार करता कि 11 करण त्वचा. नत्र जिहा, और पांचवी नाक और गुदा, शिश्न, हरन पाद और १० वी वाणी कही है ॥५०॥ बुद्धीन्द्रियाणि पञ्चैयां श्रोतादीन् नुपूर्वाशः । कन्द्रियाणि पञ्चषां पावादीनि प्रचनने ॥६॥ एकादर्श मनोनेयं स्वगुणेनोभयात्मकम् । यस्मिन् जिने जितावेनौ भवतः पञ्चको गणौ ॥१२॥ जन में श्रांत्रादि क्रमश पांचबुद्दीन्द्रिय अथान् बानेन्द्रिय हैं और उनमे गुदा श्रादि पांच कर्मेन्द्रिय कहते है ।।११।। एकादशवां मन अपने गुण से दाना (नानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रियो ) को चलाने वाला है। जिसके वश्य हाने से यह दोनों पाच र के गण वश में हो जाते है ।।१२।।