___ न कि-यह "न" और "कि" से मिलकर बना है; इससे बहुधा दो बातों में से दूसरी का निषेध सूचित होता है ; जैसे, "अंगरेज लोग च्यापार के लिए आये थे न कि देश जीतने के लिए।" नहीं तो यह भी संयुक्त क्रिया-विशेषण है और समुच्चय-बोधक के समान उपयोग में श्राता है। इससे किसी बात के त्याग का फल सूचित होता है; जैसे, "उसने मुँह पर घूघट सा डाल लिया है; नहीं तो राजा की आँखें कब उस पर ठहर सकती थीं !" (इ) विरोधदर्शक-पर, परंतु, किंतु, लेकिन, बरन, बल्कि। ये अव्यय दो वाक्यों में से पहले का निषेध वा परिमिति सूचित करते हैं। पर-“पर” ठेट हिन्दी शब्द है; "परंतु" तथा "किंतु" संस्कृत शद हैं और "लेकिन" उर्दू है। "पर", "परंतु" और "लेकिन" पर्यायवाची हैं। . . किन्तु, वरन-ये शब्द भी प्रायः पर्यायवाची हैं और इनका प्रयोग बहुधा निषेधवाचक वाक्यों के पश्चात् होता है; जैसे, "मैं केवल सपेरा नहीं हूँ; किंतु भाषा का कवि भी हूँ।" "इस संदेह का इतने काल बीतने पर यथोचित समाधान करना कठिन है; वरन बड़े बड़े विद्वानों की मति भी इसके विरुद्व है।" "बरन" के पर्यायवाची "वरंच" (संस्कृत) और “बल्कि" (उर्दू) हैं। (ई) परिणामदर्शक-इसलिए, सो, अतः, अतएव । इन अव्ययों से यह जाना जाता है कि इनके आगे के वाक्य का अर्थ पिछले वाक्य के अर्थ का फल है; जैसे, "अव भोर होने
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