पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/९३

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(अ) कविता में बहुधा पूर्वोक्त विभक्तियों का लोप होता है; जैसे, मातु-समीप। सभा-मध्य। पिता-पास। . १९८-"परे" और "रहित” के पहले "से" आता है। "पहले", "पीछे”, “आगे” और “बाहर" के साथ "से" विकल्प से लाया जाता है। जैसे, समय से ( वा समय के) पहले, सेना के ( वा सेना से ) पीछे, जाति से (वा जाति के) बाहर । १६६-"मारे", "बिना" और "सिवा” कभी कभी संज्ञा के पहले आते हैं; जैसे, मारे भूख के, सिवा पत्तों के, बिना हवा के। "बिना", "अनुसारं” और “पीछे" बहुधा भूत- कालिक कृदंत के विकृत रूप के आगे ( बिना विभक्ति के) आते हैं; जैसे, "ब्राह्मण का ऋण दिये बिना ।" "नीचे लिखे अनुसार ।" "रोशनी हए पीछे" . . २००-“योग्य" और "लायक" बहुधा क्रियार्थक संज्ञा के विकृत रूप के साथ आते हैं; जैसे, "जो पदार्थ देखने योग्य हैं।” “याद रखने लायक ।” ___२०१-स्मरण की सहायता के लिए यहाँ संबंधसूचकों का वर्गीकरण दिया जाता है- कालवाचक-आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, अनंतर, पश्चात. उपरांत, लगभग। स्थानवाचक-पागे, पीछे, ऊपर, नीचे, तले, सामने, पास, निकट. समीप, नजदीक (नगीच), यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर, भीतर। दिशावाचक-पोर, तरफ, पार, पारपार, अासपास, तई, प्रति ।