( ७४ ) बनते हैं, और (३) एक धातु में एक वा दो धातु अथवा संज्ञा जोड़ने से संयुक्त धातु बनते हैं। (१) प्ररणार्थक धातु १७२-मूल धातु के जिस विकृत रूप से क्रिया के व्यापार में कर्त्ता पर किसी की प्रेरणा समझी जाती है उसे धातु कहते हैं; जैसे, "बाप लड़के से चिट्ठी लिखवाता है।" इस वाक्य में मूल धातु "लिख” का विकृत रूप “लिखवा" है जिससे जाना जाता है कि लड़का लिखने का व्यापार बाप की प्रेरणा से करता है; इसलिए “लिखवा" "प्रेरणार्थक" धातु है और "बाप" प्रेरक कर्ता तथा “लड़का" प्रेरित कर्ता है। "मालिक नौकर से गाड़ी चलवाता है।" इस वाक्य में "चलवाता है। प्रेरणार्थक क्रिया, “मालिक" प्रेरक कर्ता और "नौकर" प्रेरित कर्ता है। १७३-आना, जाना, सकना, होना, रुचना, पाना आदि धातुओं से अन्य प्रकार के धातु नहीं बनते। शेष सब धातुओं से दो दो प्रकार के प्रेरणार्थक धातु बनते हैं, जिनका पहला रूप बहुधा सकर्मक क्रिया ही के अर्थ में आता है और दूसरे रूप से यथार्थ प्रेरणा समझी जाती. है; जैसे, "घर गिरता है।” “कारीगर घर गिराता है।" "कारीगर नौकर से घर गिरवाता है।" "लोग कथा सुनते हैं।" "पंडित लोगों को कथा सुनाते हैं।" "पंडित शिष्य से श्रोताओं को कथा सुनवाते हैं।" . र .
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