( ६६ ) किया के साधारण रूप भागना, श्राना, जाना, होना, इत्यादि लिखने- की चाल है। (आ) क्रिया का साधारण रूप क्रिया नहीं है; क्योंकि उसके उप- योग से हम किसी वस्तु के विषय में विधान नहीं कर सकते। क्रिया के साधारण रूप का प्रयोग यहुधा भाववाचक संज्ञा के समान होता है। कोई कोई इसे क्रियार्थक संज्ञा भी कहते हैं। उदाहरण-. "पढ़ना एक गुण है। मैं पढ़ना सीखता हूँ।" (इ) कई एक धातुओं का भी प्रयोग भाववाचक संज्ञा के समान होता है; जैसे, "हम नाच नहीं देखते।" श्राज घोड़ों की दौड़ हुई।" "तुम्हारी जाँच ठीक नहीं निकली।" (ई) अधिकांश धानु क्रियावाचक होते हैं; जैसे, पढ़, लिख, उठ, बैठ, चल, फंक, काट। कोई कोई धातु स्थिति-दर्शक भी हैं; जैसे, सो, गिर, मर, हो; और कोई कोई विकार-दर्शक हैं; जैसे, बन, दिख, निकल । १५६-धातु मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं-(१) सक.. मक और (२ ) अकर्मक। १६०-जिस धातु से सूचित होनेवाले व्यापार का फल ___ कर्ता से निकलकर किसी दूसरी वस्तु पर पड़ता है, उसे सकर्मक धातु कहते हैं। जैसे, “सिपाही चोर को पकड़ताः है।" "नौकर चिट्ठी लाया ।" पहले वाक्य में “पकड़ता . __ है" क्रिया के व्यापार का फल 'सिपाही' कर्ता से निकलकर - "चोर” पर पड़ता है; इसलिए' “पकड़ता है" क्रिया (अथवा “पकड़" धातु) सकर्मक है। दूसरे वाक्य में "लाया
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