सर्वनाम दूसरे वाक्य में आता है; जैसे, "राजा भीष्मक का बड़ा बेटा, जिसका नाम रुक्म था, मुँझला के बोला।" "यह नारी कौन है जिसका रूप वस्त्रों में झलक रहा है।"
(इ) बहुधा संबंध-वाचक और नित्य-संबंधी सर्वनामों में से किसी एक का प्रयोग विशेषण के समान होता है; जैसे, "क्या आप फिर उस परद को डाला चाहते हैं जो सत्य ने मेरे सामने से हटाया ?” “जिस हरिश्चंद्र ने उदय से अस्त तक की पृथ्वी के लिए धर्म न छोड़ा, उसका धर्म आध गज कपड़े के वास्ते मत छुड़ाओ।"
(ई) आदर और बहुत्व के लिए भी "जो" आता है; जैसे, "यह ( ये ) चारों कवित्त श्री बाबू गोपालचंद्र के बनाये हैं, जो कविता में अपना नाम गिरधरदास रखते थे।" "यहाँ तो वे ही बड़े हैं जो दूसरे को दोष लगाना पढ़े हैं।"
(उ) कभी कभी संबंध-वाचक वा नित्य-संबंधी सर्वनाम का लोप होता है; जैसे, "हुआ सो हुआ ।” “जो पानी पीता है, आपको असीस देता है ।” कभी कभी दूसरे वाक्य ही का लोप होता है; जैसे, “जो आज्ञा”, “जो हो”।
(ऊ) "जो" के साथ अनिश्चय-वाचक सर्वनाम भी जोड़े जाते हैं। "कोई" और "कुछ" के अर्थो में जो अंतर है, वही "जो कोई" और "जो कुछ" के अर्थो में भी है; जैसे. "जो काई नल को घर में घुसने देगा,जान से हाथ धोयेगा।"
"महाराज, जो कुछ कहो बहुत समझ बूझकर कहियो ।”