जिनसे इंद्र और बावन-अवतार उत्पन्न हुए ।" "ये हमारे यहाँ भेज दो।"
(अ) आदर के लिए “ये" के बदले "बाप" का प्रयोग केवल बोलने में होता है और इसके लिए श्रादर-पान की ओर हाथ बढ़ाकर संकेत भी करते हैं।
१०६-वह-( एकवचन); वे-(बहुवचन)।
हिंदी में कोई विशेष अन्यपुरुष सर्वनाम न होने के कारण उसके बदले निश्चयवाचक "वह" आता है। इस सर्वनाम के प्रयोग अन्यपुरुष के विवेचन में बता दिये गये हैं। (अं०-६६,, १००)। इससे दूर की वस्तु का बोध होता है।
(अ) पहले कही हुई दो वस्तुओं में से पहली के लिए "वह” और पिछली के लिए “यह" आता है; जैसे, "महात्माः और दुरात्मा में इतना भेद है कि उनके मन, वचन और कर्म.. एक रहते हैं, इनकेभिन्न भिन्न ।”
"कनक कनक त सौगुनी मादकता अधिकाय ।
वह खाये बौरात है यह पाये बौराय ॥"
१०७- सो -(दोनों वचन )।
यह सर्वनाम बहुधा संबंधवाचक सर्वनाम “जो” के साथ आता है और इसका अर्थ संज्ञा के वचन के अनुसार "वह". वा "वे” होता है; जैसे, "जिस बात की चिंता महाराज को है सो (वह) कभी न हुई होगी।” “जिन पौधों को तू सींचः चुकी है सो (वे) तो इसी ग्रीष्म ऋतु में फूलेंगे।" . " आप