( ४२ ) १०४-यह-(एकवचन)। इसका प्रयोग नीचे लिखे स्थानों में होता है-
(अ) पा स की किसी वस्तु के विषय में बोलने के लिए; जैसे, "यहकिसका पराक्रमी बालक है ?" "यह कोई नया नियम नहीं है।"
(आ) पहले कही हुई संज्ञा वा संज्ञा-वाक्यांश के बदले; जैसे, "माधवीलता तो मेरो बहिन है, इसे क्यों न सींचती !" "भला, सत्य धर्म पालना क्या हँसी खेल है। यहआप ऐसे महात्माओं का ही काम है।"
(इ) पहले कहे हुए वाक्य के स्थान में; जैसे, "सिंह को मार मणि ले कोई जंतु एक अति डरावनी औड़ी गुफा में गया; यहहम सब अपनी आँखों देख आये।" "मुझको आपके कहने का कभी कुछ रंज नहीं होता है। इसकेसिवाय मुझे इस अवसर पर आपकी कुछ सेवा करनी चाहिए थी।"
(ई) पीछे आनेवाले वाक्य के स्थान में; जैसे-"उन्होंने अब यह चाहा कि अधिकारियों को प्रजा ही नियत किया करे।" "मुझे इससे बड़ा आनंद है कि भारतेंदुजी की सबसे पहले छेड़ी हुई यह पुस्तक आज पूरी हो गई ।"
१०५-ये-( बहुवचन ) 'ये' 'यह' का बहुवचन है। कोई कोई लेखक बहुवचन में भी 'यह' लिखते हैं, पर शुद्ध शब्द 'ये' हैं। इसका प्रयोग बहुत्व और आदर के लिए होता है; जैसे, "ये वे ही हैं