(अ) किसी संज्ञा या सर्वनाम के अवधारण के लिए; जैसे, "मैं आप वहीं से आया हूँ।" "बनते कभी हम आप योगी।"
(आ) दूसरे व्यक्ति के निराकरण के लिए; जैसे- "श्रीकृष्णजी ने ब्राह्मण को बिदा किया और आप चलने का विचार करने लगे।" "वह अपने को सुधार रहा है।"
(इ) सर्वसाधारण के अर्थ में भी "आप" आता है;
जैसे, "आप" भला तो जग भला ।" "अपने से बड़े का आदर करना उचित है।"
(ई) “आप” के बदले वा उसके साथ बहुधा "खुद"
(उर्दू), "स्वयं" वा "स्वतः” ( संस्कृत ) का प्रयोग होता है। स्वयं, स्वत: और खुद हिंदी में अव्यय हैं और इनका प्रयोग बहुधा क्रियाविशेषण के समान होता है। उदा०-"आप खुद वह बात समझ सकते हैं।" "हम आज अपने आपको भी हैं स्वयं भूले हुए।" "सुल्तान स्वतः वहाँ गये थे।"
(उ) "आप ही", "अपने आप”, “आपसे आप” और "आप ही आप” का अर्थ "मन से" वा "स्वभाव से" होता है और इनका प्रयोग क्रियाविशेषण-वाक्यांशों के समान होता है।
१०३-जिस सर्वनाम से वक्ता के पास अथवा दूर की किसी निश्चित वस्तु का बोध होता है, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। निश्चयवाचक सर्वनाम तीन हैं- यह, वह, सो।