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"इंद्र -- राजा हरिश्चंद्र का प्रसंग निकला था; सो उन्होंने उसकी बड़ी स्तुति की।"
१०० -- वे -- अन्यपुरुष (बहुवचन)।
कोई कोई इसे "वह" लिखते हैं। पर बहुवचन का शुद्ध रूप "वे" ही है, "वह" नहीं।
(अ) एक से अधिक प्राणियों, पदार्थो वा धर्मों के विषय में बोलने के लिए "वे" आता है; जैसे, "लड़की तो रघुवंशियों के भी होती है; पर वे जिलाते कदापि नहीं।" "वे ऐसी बातें हैं।"
(आ) एक ही व्यक्ति के विषय में आदर प्रकट करने के लिए; जैसे "वे (कालिदास) असामान्य वैयाकरण थे।" "जो बातें मुनि के पीछे हुई, सो उनसे किसने कह दीं?"
१०१ -- आप ('तुम' वा 'वे' के बदले) -- मध्यम वा अन्यपुरुष (बहुवचन)।
यह पुरुषवाचक "आप" प्रयोग में निजवाचक "आप" से भिन्न है। इसका प्रयोग मध्यम और अन्यपुरुष बहुवचन में आदर के लिए होता है। 'आप' के साथ क्रिया सदा अन्य- पुरुष बहुवचन में आती है।
(अ) अपने से बड़े दरजेवाले मनुष्य के लिए "तुम"
के बदले "आप" का प्रयोग शिष्ट और आवश्यक समझा
जाता है; जैसे, "सखी -- भला, आपने इसकी शांति का भी