( ३५ ) - २-प्रयोग के अनुसार सर्वनामों के छः भेद हैं- (.) पुरुषवाचक-मैं, तू, श्राप ( श्रादरसूचक)। (२) निजवाचक--श्राप । (३) निश्चयवाचक--यह, वह, सो। ( ४ ) संबंधवाचक--जो। (५) प्रश्नवाचक-कौन, क्या । । (६) अनिश्चयवाचक-कोई, कुछ । . ६३-वक्ता अथवा लेखक की दृष्टि से संपूर्ण सृष्टि के तीन भाग किये जाते हैं-पहला-स्वयं वक्ता वा लेखक, दूसरा-श्रोता किंवा पाठक, और तीसरा-कथाविषय अर्थात् वक्ता और श्रोता को छोड़कर और सब । सृष्टि के इन तीनों रूपों को व्याकरण में पुरुष कहते हैं और ये क्रमशः उत्तम, मध्यम और अन्यपुरुष कहलाते हैं। उत्तमपुरुष “मैं" और मध्यमपुरुष “तू' को छोड़कर शेष सर्वनाम और सब संज्ञाएँ अन्यपुरुष में आती हैं। ६४-सर्वनामों के तीनों पुरुषों के उदाहरण ये हैं- - उत्तमपुरुष-मैं, मध्यमपुरुष-तू , आप (आदरसूचक), अन्य- पुरुष-यह, वह, आप ( आदरसूचक ), सो, जो, कौन, क्या, कोई, कुछ। सर्व-पुरुष-वाचक-आप (निजवाचक)। . . ६५-में-उत्तमपुरुष (एकवचन)। (अ) जब वक्ता या लेखक केवल अपने ही संबंध में कुछ 'विधान करता है तब वह इस सर्वनाम का प्रयोग करता है।
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