( २१६) ४०८-अपूर्ण सकर्मक क्रियाओं के कर्तृवाच्य में कर्म के साथ कमपूर्ति आती है; जैसे, ईश्वर राई को पर्वत करता है। मैंने मिट्टी को सेना बनाया। ४०६-कर्मवाच्य में द्विकर्मक अपूर्ण सकर्मक क्रियाओं का मुख्य कर्म उद्देश्य हो जाता है और वह कर्तीकारक में आता है; परंतु गौण कर्म अथवा कर्मपूत्ति ज्यों की त्यों बनी रहती है; जैसे, ब्राह्मण को दान दिया गया। मुझसे वह. बात पूछी जायगी। सिपाही सर्दार बनाया गया । .. ४१०-सजातीय क्रियाओं के साथ सजातोय कर्म आताः है; जैसे, वह अच्छी चाल चलता है। योद्धा सिंह की बैठक बैठा। - ४११---उद्देश्य के समान कर्म और पूर्ति का भी.विस्तार होता . है । यहाँ मुख्य कर्म के विस्तारक शब्दों की सूची दी जाती है-.. (क) विशेषण-वह उड़ती हुई चिड़िया पहचानता है। (ख) समानाधिकरण शब्द-मैं अपने मित्र गोपाल को बुलाता हूँ। (ग) संबंध-कारक-उसने अपना हाथ बढ़ाया। श्राज का पाठ पढ़ लो। (घ) वाक्यांश-मैंने नटों का वास पर चढ़ना देखा। ४१२----उद्देश्य की संज्ञा के समान विधेय की क्रिया का भी विस्तार होता है। विधेय को क्रिया क्रिया-विशेषण अथवा उसके समान उपयोग में आनेवाले शब्दों के द्वारा बढ़ाई जाती है । ४१३-विधेय की क्रिया का विस्तार आगे लिखे शब्दों से. होता है- ... .... . . .
पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/२२४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।