पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१९८

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( १६३ ) परा-पीछे, उलटा; जैसे, पराक्रम, पराजय, पराभव । परि-अासपास, चारों ओर, पूर्ण; जैसे, परिक्रमा, परिजन । प्र-अधिक, आगे, ऊपर; जैसे, प्रख्यात, प्रचार, प्रबल । प्रति-विरुद्ध, सामने, एक एक; जैसे, प्रतिकूल, प्रत्यक्ष, प्रतिषण । वि-भिन्न, विशेष, अभाव; जैसे, विदेश, विवाद, विज्ञान । सम्-अच्छा, साथ, पूर्ण; जैसे, संतोप, संगम, संग्रह । सु-अच्छा, सहज, अधिक; जैसे, सुकर्म, सुगम, सुशिक्षित । ३५४-संस्कृत शब्दों में कोई कोई विशेषण और अव्यय भी उपसर्गों के समान व्यवहुत होते हैं। अ-अभाव, निपेध; जैसे, अधर्म, अज्ञान, अगम, अनीति । स्वरादि शब्दों के पहले "अ" के स्थान में "अन्" हो जाता है और "श्रन्" के "न" में आगे का स्वर मिल जाता है। उदा०- अनेक, अनंतर । (हिंदी) अजान, अकृता, अटल, अथाह, अलग। अंतर -भीतर; उदा०-अंत:पुर, अंतःकरण, अंतर्गत । कु-(का, कद) त्रुरा; उदा०—कुकर्म, कापुरुप, कदाचार । (हिंदी) कुचाल, कुठौर, कुडौल, कुढंगा, कुपूत । पुनर-फिर; जैसे, पुनर्जन्म, पुनर्विवाह, पुनरुक्त । स, सह-सहित, साथ; जैसे, सजीव, सहज, सहोदर।। (हिंदी) सबेरा, सजग, सचेत, सहेली, साढ़े। सत्-अच्छा; जैसे, सज्जन, सत्कर्म, सद्गुरु, सत्पात्र। . स्व-अपना, निजी; उदा०-स्वदेश, स्वतंत्र, स्वभाव ।