( १६२ ) कृत् कहते हैं; और कृत् प्रत्ययों के योग से जो शब्द बनते हैं, वे कृदंत कहलाते हैं। धातुओं को छोड़ शेष शब्दों के आगे प्रत्यय लगाने से जो शब्द तैयार होते हैं, उन्हें तद्धित कहते हैं। दूसरा अध्याय उपसर्ग ३५३-हिंदी में उपसर्ग-युक्त संस्कृत तत्सम और उर्दू शब्द आते हैं; इसलिए यहाँ तीनों भाषाओं के संस्कृत उपसर्गो का भी विवेचन किया जाता है। (१) संस्कृत-उपसर्ग अति-अधिक, उस पार, ऊपर; जैसे, अतिकाल, अतिशय । अधि-ऊपर, स्थान में श्रेष्ठ; जैसे, अधिकार, अधिकरण । अनु-पीछे, समान; जैसे, अनुकरण, अनुक्रम, अनुचर, अनुज । अप-बुरा, हीन, विरुद्ध, प्रभाव; जैसे, अपकीर्ति, अपमान ! अभि-पोर, पास, सामने; जैसे, अभिप्राय, अभिमुख । . अव-नीचे, हीन, अभाव; जैसे, अवगत, अवगुण, अवतार । श्रा-तक, समेत, उलटा; जैसे, आकर्पण, आजीवन, श्राक्रमण । उत्-द्-ऊपर, ऊँचा, श्रेष्ठ; जैसे, उत्कर्ष, उत्कंठा, उत्तम । उप-निकट, सदृश, गौण; जैसे, उपकार, उपदेश, उपनाम । दुर्, दुस्-बुरा, कठिन, दुष्ट; जैसे, दुराचार, दुर्गुण, दुष्का । निर , निस्-बाहर, निषेध; जैसे, निर्णय, निरपराध ।
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