पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१९३

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( १८८ ) ( ४ ) पूर्वकालिक कृदंत के मेल से बनी हुई ३४१-पूर्वकालिक कृदंत के योग से तीन प्रकार की - संयुक्त क्रियाएं बनती हैं-(१) अवधारणबोधक, (२) शक्तिबोधक और ( ३ ) पूर्णताबोधक। ३४२-अवधारणबोधक क्रिया से मुख्य क्रिया के अर्थ में अधिक निश्चय पाया जाता है। नीचे लिखी सहायक क्रियाएँ इस अर्थ में आती हैं- (१) उठना, ( २ ) बैठना, (३) डालना-ये क्रियाएँ बहुधा 'अचानकपन' के अर्थ में आती हैं; जैसे, बोल उठना, जाग उठना, मार बैठना, उठ बैठना, तोड़ डालना, काट डालना । () आना, (५) लेना-इनसे बहुधा वक्ता की ओर क्रिया का व्यापार सूचित होता है; जैसे, ले भाना, बढ़ श्राना, कर लेना, समझ लेना। (६) पड़ना, (७) जाना-पे क्रियाएँ बहुधा शीघ्रता सूचित · करती हैं; जैसे, कूद पड़ना, चौंक पढ़ना, खा जाना, पहुँच जाना । (८) देना-इस क्रिया से बहुधा दूसरे की ओर व्यापार का होना पाया जाता है; जैसे, छोड़ देना, कह देना, मार देना। (६) रहना-यह क्रिया बहुधा भूतकालिक कृदंतों से बने हुए कालों में पाती है। इसके अासन्नभूत और पूर्णभूत कालों से क्रमशः अपूर्ण वर्तमान और अपूर्ण भूत का बोध होता है; जैसे, सड़के खेल रहे हैं । लदकी खेल रही थी।