( १८६ ) (क) जब इन संयुक्त क्रियाओं में क्रियार्थक संज्ञा का प्रयोग विशे-- पण के समान होता है, तब ये बहुधा विशेष्य के लिंग-वचन के अनु- सार बदलती हैं; जैसे, कुलियों की मदद करनी चाहिए। मुझे दवा पीनी पड़ेगी। जो होनी है सो होगी। .! ३३६-क्रियार्थक संज्ञा के विकृत रूप से तीन प्रकार की संयुक्त क्रियाएं बनती हैं-(१) प्रारंभबोधक, (२).. अनुमतिबोधक, (३) अवकाशबोधक । (१) प्रारंभबोधक क्रिया "लगना" क्रिया के योग __ से बनती है; जैसे, वह कहने लगा। (२) “देना” जोड़ने से अनुमतिबोधक क्रिया बनती है; जैसे, मुझे जाने दीजिए, उसने मुझे बोलने न दिया। (३) अवकाशबोधक क्रिया अर्थ में अनुमतिबोधक क्रिया की प्रायः विरोधिनी है, इसमें “देना” के बदले “पाना" जोड़ा जाता है; जैसे, "तू यहाँ से जाने न पावेगा।" "बात. न होने पाई।" - (अ) पाना क्रिया कभी कभी पूर्वकालिक कृदंत के धातुवत् रूफ . के साथ भी पाती है; जैसे, "कुछ लोगों ने श्रीमान् को बड़ी कठिनाई से एक दृष्टि देख पाया।" (२)-वर्तमानकालिक कृदंत के मेल से बनी हुई ३३७-वर्तमानकालिक कृदंत के आगे आना, जाना वा रहना क्रिया जोड़ने से नित्यताबोधक क्रिया बनती है।
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