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चौथा अध्याय

संधि

४१--दो निर्दिष्ट अक्षरों के पास आने के कारण उनके मेल से जो विकार होता है, उसे संधि कहते हैं। संधि और संयोग में (अंक १५) यह अंतर है कि संयोग में अक्षर जैसे के तैसे रहते हैं; परंतु संधि में उच्चारण के नियमानुसार दो अक्षरों के मेल में उनकी जगह कोई भिन्न अक्षर हो जाता है।

[सूचना--संधि का विषय संस्कृत व्याकरण से संबंध रखता है। हिंदी में संधि के नियमों से मिले हुए जो संस्कृत सामासिक शब्द आते हैं, उनके संबंध से इस विषय के निरूपण की आवश्यकता होती है।]

४२--संधि तीन प्रकार की है-(१) स्वर-संधि, (२) व्यंजन-संधि और (३) विसर्ग-संधि।

(१) दो स्वरों के पास पास आने से जो संधि होती है, उसे स्वर-संधि कहते हैं; जैसे, राम + अवतार =राम् + अ + अ + वतार = राम् + आ + वतार = रामावतार।

(२) जिन दो वर्णो में संधि होती है, उनमें से पहला वर्ण व्यंजन हो और दूसरा वर्ण चाहे स्वर हो चाहे व्यंजन, तो उनकी संधि को व्यंजन-संधि कहते हैं; जैसे, जगत् + ईश = जगदीश, जगत् + नाथ = जगन्नाथ।