( १५६ ) (२) सामान्य भविष्यत्-काल की रचना के लिए संभाव्य-भविष्यत् के प्रत्येक पुरुष में पुल्लिंग एकवचन के लिए गा, पुल्लिंग बहुवचन के लिए गे, और स्त्रीलिंग एकवचन तथा बहुवचन के लिए गी लगाते हैं; जैसे, जाऊँगा, जायेंगे, जायगी, जाओगी। (३) प्रत्यक्ष विधि का रूप संभाव्य-भविष्यत् के रूप के समान होता है; दोनों में केवल मध्यम पुरुष के एकवचन का अंतर होता है। विधि का मध्यम पुरुष एकवचन धातु ही के समान होता है; जैसे, "कहना” से “कह", "जाना” से “जा"। (अ) आदर-सूचक “आप” के साथ मध्यम पुरुष में धातु के आगे "इये" जोड़ देते हैं; जैसे, आइये, बैठिये । (आ) लेना, देना, पीना, करना और होना के आदर- सूचक विधि-काल में, "इये" के पहले ज का आगम होता है और उनके आद्य स्वरों में प्राय: वही रूपांतर होता है जो इन क्रियाओं के भूतकालिक कृदंत बनाने में किया जाता है; जैसे- लेना-लीजिये देना-दीजिये होना--हूजिये करना--कीजिये पीना-पीजिये (इ) "चाहिए” यथार्थ में चाहना की आदर-सूचक विधि का रूप है। पर इससे वर्तमानकाल की आवश्यकता का बोध होता है; जैसे, मुझे पुस्तक चाहिए।. . ( ई ) विशेष आदर के लिए “आप” के साथ धातु में "इयेगा" प्रत्यय जोड़ते हैं; जैसे, आइयेगा, बैठियेगा।
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