( १५३ ) है । कत वाचक संज्ञा का रूपांतर आकारांत संज्ञा वा विशेषण के समान होता है। ३११-वर्तमानकालिक कृदंत धातु के अंत में "ता" लगाने से बनता है; जैसे, चलता, बोलता। इसका - प्रयोग बहुधा विशेषण के समान होता है और इसका रूप आकारांत विशेषण के समान बदलता है; जैसे, बहता पानी, चलती चक्की, जीते कीड़े। ____३१२-भूतकालिक कृदंत धातु के अंत में आ जाड़ने से __बनता है । इसकी रचना नीचे लिखे नियमों के अनुसार होती है- - (१) अकारांत धातु के अंत्य अ के स्थान में 'आ' कर देते हैं; जैसे, बोलना-बोला पहचानना-पहचाना डरना-डरा मारना-मारा (२) धातु के अंत में आ, ए वा ओ हो तो धातु के अंत में "या" कर देते हैं; जैसे, लाना-लाया सेना-सेया बोना-बोया कहलाना-कहलाया खोना-बोया दुवोना-डुबोया (अ) यदि धातु के अंत में ई हो तो उसे हस्त्र कर देते हैं; जैसे, पीना-पिया जीना-जिया . सीना-सिया (३) ऊकारांत धातु के "ऊ” को ह्रस्व करके उसके ___ आगे "आ". लगाते हैं; जैसे, चूना-चुवा छूना-छुश्रा ना-संया
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