पृष्ठ:मध्य हिंदी-व्याकरण.djvu/१५६

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( १५१ ) ३०४-कर्मणिप्रयोग दो प्रकार का होता है-(१) कतृ- वाच्य कर्मणिप्रयोग और (२) कर्मवाच्य कर्मणिप्रयोग। . (१) "बोलना"-वर्ग की सकर्मक क्रियाओं को छोड़ शेष कर्तृवाच्य सकर्मक क्रियाएँ भूतकालिक कृदंत से बने कालों में ( अप्रत्यय कर्मकारक के साथ ) कर्मणिप्रयोग में आती हैं; जैसे, मैंने पुस्तक पढ़ी, मंत्री ने पत्र लिखे । कत वाच्य कर्मणिप्रयोग में कर्ता-कारक का “ने" प्रत्यय आता है। (२) कर्मवाच्य को क्रियाएँ कर्मणिप्रयोग में आती हैं। जैसे, चिट्ठी भेजी गई, लड़का बुलाया जायगा। ३०५-भावेप्रयोग दो प्रकार का होता है-(१) क - वाच्य भावेप्रयोग (२) भाववाच्य भावेप्रयोग। (१) कर्तृवाच्य भावेप्रयोग में सकर्मक क्रिया के कर्ता और कर्म दोनों सप्रत्यय रहते हैं; और यदि क्रिया अकर्मक हो तो केवल कर्ता सप्रत्यय रहता है; जैसे, रानी ने सहेलियों को बुलाया, हमने नहाया है। (२) भाववाच्य भावेप्रयोग में सदा अकर्मक क्रिया आती है। यदि उसके कर्ता की आवश्यकता हो तो उसे करण-कारक में रखते हैं; जैसे, यहाँ बैठा नहीं जाता; मुझसे चला नहीं जाता। (५) कृदंत ... . ३०६-क्रिया के जिन रूपों का उपयोग दूसरे शब्द-भेदों के समान होता है, उन्हें कृदंत कहते हैं; जैसे, ‘चलना (संज्ञा);