छठा अध्याय क्रियाओं का रूपांतर २८५-क्रिया में वाच्य, काल, अर्थ, पुरुष, लिंग और वचन के कारण विकार होता है। (क) जिस क्रिया में ये विकार पाये जाते हैं और जिसके द्वारा विधान किया जाता है, उसे समापिका क्रिया कहते हैं; जैसे, "लड़का पढ़कर खेलता है" इस वाक्य में “खेलता है" समापिका क्रिया है; "पढ़कर" नहीं है। (१) वाच्य २५६-वाच्य क्रिया के उस रूपांतर को कहते हैं जिससे जाना जाता है कि वाक्य में कर्ता के विषय में विधान किया गया है वा कर्म के विषय में, अथवा केवल भाव के विषय में; जैसे, "स्त्री कपड़ा सीती है" (कर्ता), "कपड़ा सिया जाता है" (कर्म ), "यहाँ बैठा नहीं जाता” ( भाव )। ____२८७-कर्तवाच्य क्रिया के उस रूपांतर को कहते हैं जिससे जाना जाता है कि वाक्य का उद्देश्य क्रिया का कर्ता है; जैसे, "लड़का दौड़ता है", "लड़का पुस्तक पढ़ता है", "लड़के ने पुस्तक पढ़ी", "रानी ने सहेलियों को बुलाया”। २८८-क्रिया के उस रूप को कर्मवाच्य कहते हैं जिससे जाना जाता है कि वाक्य का उद्देश्य क्रिया का धर्म
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