( १२३ ) पुस्तक । संबंध कारक का रूप संबंधी शब्द के लिंग-वचन-कारक के अनुसार बदलता है। (अं०-२८२) . (७) संज्ञा का वह रूप जिससे क्रिया के आधार का बाध होता है, अधिकरण कारक कहलाता है; जैसे, "सिंह वन में रहता है ।" "वंदर पेड़ पर चढ़ रहे हैं।" (८) संज्ञा के जिस रूप से किसी को चेताना या पुकारना सूचित होता है, उसे संबोधन, कारक कहते हैं; जैसे, हे नाय ! मेरे अपराधों को क्षमा करना ।" "अरे लड़के, इधर आ।" २५६---हिंदी में अधिकरण-कारक की विभक्तियों के साथ बहुधा संबंध वा अपादान-कारक की विभक्ति आती है; जैसे, "हमारे पाठकों में से बहुतेरों ने " "तट पर से।" "कुए.. में का मेंढक " २५७--कोई कोई विभक्तियाँ कुछ क्रिया-विशेषणों में भी पाई जाती हैं; जैसे- को-कहीं को, वहां को, आगे को । से-कहाँ से, वहीं से, धागे से। का-कहीं का, जहाँ का, कब का । पर-वहाँ पर, जहाँ पर । .: संज्ञाओं की कारक-रचना - २५८-विभक्तियों के योग के पहले संज्ञाओं का जो रूपां- __ तर होता है, उसे विकृत रूप कहते हैं; जैसे, "घोड़ा" शब्द' ___ के आगे "ने. विभक्ति के योग से. एकवचन में "घोड़े और
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