( १२१ ) को कारक कहते हैं; जैसे, "रामचंद्रजी ने खारी जल के समुद्र पर बंदरों से पुल बँधवा दिया।" इस वाक्य में "रामचंद्रजी ने", "समुद्र.पर", "बंदरों से" और "पुल" संज्ञाओं के रूपांतर हैं, जिनके द्वारा इन संज्ञाओं का संबंध "धवा दिया" क्रिया के साथ सूचित होता है। "जल के" "जल" संज्ञा का रूपांतर है और उससे "जल" का संबंध "समुद्र" से जाना जाता है। इसलिए "रामचंद्रजी ने", "समुद्र पर", "जल के", "बंदरों से" और "पुल" संज्ञाओं के कारक कहलाते हैं। कारक सूचित करने के लिए संज्ञा या सर्वनाम के आगे जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें विभक्तियाँ कहते हैं। विभक्ति के योग से बने हुए विभकयंत शब्द वा पद कहलाते हैं। २५५-हिंदी में आठ कारक हैं। इनके नाम, विभक्तियों और लक्षण नीचे दिये जाते हैं- कारक विभक्तियों (1) कर्ता (प्रधान), (अप्रधान) ने (२) कर्म (३) करण (४) संप्रदान (५) अपादान (६) संबंध का-के-की (७) अधिकरत में, पर . : . ___(5) संबोधन है, अजी, अहो, अरे ..
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