जिसमें ब्राह्मण, (४८) अहल्कार का ही पर्याय शब्द है, जैसा कि पाठवीं सदी के कोटा के पास के कणसवा के एक शिलालेख से पाया जाता है ये लोग राजकार्य में भी भाग लेते थे, क्योंकि सरकारी दफ्तरों में नियत होने के कारण इन्हें बहुत सी गुप्त राजकीय बाते मालूम हो जाती थीं। ये लोग राजकीय पड्यंत्रों और कूटनीतियों में भी भाग लेते थे, इसी लिये याज्ञवल्क्य स्मृति में राजाओं को विशेषकर इनसे प्रजा की रक्षा करने का आदेश दिया गया है पीछे से अन्य पेशेवालों के समान इनकी भी एक जाति धन गई, क्षत्रिय आदि का मिश्रण है। सूरजधज कायस्थ अपने को शाकद्वीपी (मग) ब्राह्मण बतलाते हैं और वालभ कायस्थ क्षत्रिय जाति के हैं, जैसा कि सोढ्ढल रचित 'उदयसुंदरीकथा' से पाया जाता है भारत में अस्पृश्य जातियाँ केवल दो ही-चांडाल और मृतप-- थीं। चांडाल शहर के वाहर रहते थे; शहर में आते समय वे बाँस की लकड़ी को जमीन पर पीटते रहते थे और जंगलों में से पशुपक्षियों को मारकर उनके मांस के विक्रय से अपना निर्वाह करते थे। मृतप श्मशानों की चौकी करते और शवों के कफन आदि लेते थे। हिंदू समाज के इन भिन्न भिन्न विभागों के संक्षिप्त वर्णन के वाद इन सब वर्गों के पारस्परिक संबंध पर कुछ, विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। इन चारों वर्षों में संबंध वों का परस्पर संबंध अच्छा था और परस्पर विवाह संबंध होते थे। सवर्ण विवाह श्रेष्ट होने पर भी अन्य वर्णो से विवाह करना धर्म- शास्त्र के प्रतिकूल न था। क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-कन्या से भी ब्राह्मण विवाह कर सकता था। याज्ञवल्क्य ने ब्राह्मण के लिये शूद्र-कन्या से विवाह का निषेध किया था, परंतु हमारे निर्दिष्ट अंत्यज
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