(घ ) वे काल-प्रवाह के चक्र में पड़कर नष्ट हो गए हों। फिर भी हमें इस समय पर विचार करने के लिये भिन्न भिन्न ग्रंथों से सहायता मिल सकती है। इस सामग्री का संक्षेप से हम यहाँ निर्देश करते हैं सबसे पूर्व चीनी यात्री हुएन्संग और इत्सिंग के यात्रा-वर्णनों से उस समय की धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का अच्छा परिचय मिलता है। चीनी यात्रियों के अतिरिक्त अल मसूदी और अल्वेरुनी आदि अरव के भारत-विषयक ग्रंथ भी विशेष महत्त्व के हैं। उस समय संस्कृत, प्राकृत या द्रविड़ भाषाओं काव्य, नाटक, कथाओं और पुराण आदि से भी तत्कालीन सामा- जिक सभ्यता के संबंध में काफी बातें मालूम होती हैं । प्राचीन शोध से उपलब्ध ताम्रपत्रों, शिलालेखां, सिक्कों और मुद्रानों से भी कम सहायता नहीं मिलती। याज्ञवल्क्य, हारीत, विष्णु प्रभृति स्मृतियों तथा विज्ञानेश्वर-कृत याज्ञवल्क्य स्मृति की टीका मिताक्षरा से तत्कालीन सब प्रकार की स्थिति पर बहुत प्रकाश पड़ सकता है इस प्राचीन सामग्री के अतिरिक्त नवीन लेखकों की भी कई पुस्तकों से बहुत सहायता ली गई है। इनमें से रमेशचन्द्र दत्त-रचित 'ए हिस्ट्री आफ सिविलिजेशन इन एश्यंट इंडिया', सर रामकृष्ण गोपाल भंडारकर-कृत 'वैष्णविज्म शैविज्म एंड अदर माइनर रिलि- जस सिस्टम,' विनयकुमार सरकार-निर्मित 'दि पोलिटिकल इंस्टि- ट्य शंस एंड थ्योरीज आफ दि हिंदूज', राधाकुमुद मुकर्जी का 'हर्ष', के० एम० पनिकर का 'श्रीहर्ष आफ कन्नोज', चि० वि० वैद्य-कृत 'हिस्ट्री आफ मिडिएवल इंडिया', ए० मैक्डानल-कृत 'इंडियाज पास्ट', नरेंद्रनाथ ला-कृत 'स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्रो एंड कल्चर', हर- विलास सारड़ा रचित 'हिंदू सुपीरियोरिटी', जान ग्रिफिथ-रचित 'दी पेंटिंग्स आफ एजंटा', लेडी हैरिंगहम-कृत 'अजंटा फ्रिस्कोज', एन० सी० मेहता की 'स्टडीज इन इंडियन पेंटिंग', 'इंपीरियल गेजेटियर
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